Rolling Towards Education:
The Impact of School on Wheels in India.
दोस्तों आप सभी का स्वागत है अपने इस वेबसाइट freepadho.com पर। दोस्तों हम सभी अपने अपने स्कूल के टाइम को काफी अच्छे से एन्जॉय किया करते थे, जिसके कारन आज भी हम अपने स्कूल को बहुत मिस करते हैं और सोचते है की काश हम 1 बार वापस से बच्चे बन कर स्कूल जा पते तो कितना अच्छा होता। लेकिन आज भी हमरे देश में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ या तो स्कूल हैं ही नहीं या किसी कारन से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते तो वैसे बच्चों के लिए SCHOOL ON WHEELS एक वरदान की तरह काम कर रहा है।
SCHOOL ON WHEELS न केवल बच्चों की स्कूल की कमी को पूरा करता है बल्कि यह उन बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए एक सुनहरा कदम है। हमे इस प्रयाश की सराहना करते हुए हर संभव सहयता करनी चाहिए ताकि हमारे देश के बच्चों का भविष्य सिर्फ स्कूल की कमी के कारन अँधेरे में न चला जाये।
क्या है SCHOOL ON WHEEELS?
school on wheels एक ऐसा इनिशिएटिव है जिसमे किसी भी बड़े बस या पुराने बड़ी गाड़ियों में क्लास रूम की तरह पूरी सुविधा को रख कर एक क्लासरूम की तरह बना दिया जाता है जिसमे ब्लैक बोर्ड / ग्रीन बोर्ड , और बेंच या कुर्शियों को रख दिया जाता है । कभी कभी अगर बस या गाड़ी छोटी होती है या जिसमें का बच्चों की बैठने की व्यवस्था होती है उस स्तिथि में कुछ अतिरिक्त कुर्शियों और बेंचों को बस के बहार लगा कर एक आउटडोर क्लासरूम बना दिया जाता है और बच्चों को पढ़ाया जाता है।
इस तरह की व्यवस्था पहाड़ी क्षेत्रों या सुदूर ग्रामीण इलाकों में बेहतर कारगर साबित हो रहा है।
स्कूल ओन व्हील्स का उद्देश्य
स्कूल ऑन व्हील्स (एसओडब्ल्यू) वंचित बच्चों के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में एक एकीकृत दृष्टिकोण है। इसका उद्देश्य 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए पूर्व-प्राथमिक और प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करना है जिससे उनका समग्र विकास हो सके।
यह परियोजना प्लान इंडिया के सहयोगी एनजीओ डोर स्टेप स्कूल द्वारा दक्षिण मुंबई की झुग्गियों में लागू की गई है। परियोजना का मुख्य घटक सड़क पर रहने वाले बच्चों और फुटपाथ पर रहने वालों को वैकल्पिक शैक्षणिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए एक मोबाइल क्लास रूम के रूप में डिजाइन की गई बस है। अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत में इन बच्चों को औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। परियोजना के अन्य प्रमुख घटकों में समुदाय आधारित शैक्षिक कार्यक्रम, स्कूल साझेदारी कार्यक्रम और समुदाय के किशोर बच्चों के साथ काम करना शामिल है।
SCHOOL ON WHEELS का प्रारंभ ..
स्कूल ओन व्हील्स का शुरुआत मुंबई के वीणा सेठ लश्करी के एक छोटे प्रयाश से हुई थी जहाँ डोर स्टेप स्कूल नाम से एक प्रयाश किया गया था जिसमे बच्चों को गौण गौण जा कर पढ़ाया जाता था जिसकी लोकप्रियता बढ़ने के बाद उन्होंने अपने इस प्रयाश का नाम डोर स्टेप स्कूल से स्कूल ओन व्हील्स कर दिया।
इस प्रयाश को अलग अलग सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के द्वारा अलग अलग नाम से आगे बढ़ाया गया जिसमे से निवेदिता फाउंडेशन का प्रयाश काफी सराहनीय रहा ।
इस स्कूल ओन व्हील्स के जरिए बचूं को हिंदी , अंग्रेजी , गणित, चित्रकला , मराठी, विज्ञानं आदि विषयों को पढ़ाया जाने लगा जिसमे बाद में कंप्यूटर साक्षरता को ध्यान में रखते हुए कंप्यूटर शिक्षा को भी जोड़ दिया गया जिससे ग्रामीण इलाका के बच्चों में आशातीत विकाश हुआ और उनका ध्यान पढ़ने में लगने लगा जिससे उन बच्चों के माता पिता उन्हें पढ़ने के लिए जरूरी सुविधा देने का हर संभव प्रयाश करने लगे जिससे उस इलाकों का सामाजिक विकास होने लगा ।
प्रारम्भ में स्कूल ओन व्हील्स के कक्षा सञ्चालन का समय 2 घंटे का था जिसे बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए 2.5 घंटा कर दिया गया ।
सरकार के द्वारा SCHOOL ON WHEELS के लिए उठाये गए PRAYASH
2008 से, इस परियोजना ने अब तक 3-18 वर्ष के आयु वर्ग के 5,000 से अधिक बच्चों को सीधे लाभान्वित किया है। एक दिन में चार कक्षाएं संचालित करते हुए, स्कूल ऑन व्हील्स एक वर्ष में 800 से अधिक बच्चों तक पहुँचता है। माता-पिता भी रुचि लेने लगे हैं और अपने बच्चों की समस्याओं के बारे में शिक्षकों से बात करने लगे हैं।
इसके अलावा, 524 बच्चों के कवरेज के साथ सात स्लम समुदायों में समुदाय आधारित शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। 12 बालवाड़ी 393 बच्चों (49% लड़के और 51% लड़कियां) तक पहुंचे। परियोजना से जुड़े 99% बच्चों ने अपनी औपचारिक स्कूली शिक्षा जारी रखी और पढ़ाई नहीं छोड़ी। 77% बच्चे नियमित थे और प्रति कक्षा 20 बच्चों की औसत उपस्थिति के साथ उनकी उपस्थिति 50% से अधिक थी। इसके अतिरिक्त, कंप्यूटर कक्षाओं में भाग लेने से 756 बच्चों को लाभ हुआ और बायकुला म्यूनिसिपल स्कूल के 726 बच्चों को स्कूल साझेदारी कार्यक्रमों के माध्यम से समर्थन दिया गया। पहली-चौथी कक्षा के लगभग 509 बच्चों को पढ़ने का पाठ दिया गया, जिनमें से 97% परियोजना लक्ष्य तक पहुंचने में सफल रहे।
हाल ही यह परियोजना मणिपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में लागु की गयी है जिसका काफी अच्छा प्रभाव बच्चों पर देखने को मिल रहा है ।
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